Ban On Website

     साथियों, मुम्बई में अन्ना जी के अनशन के पहले ही दिन मुम्बई पुलिस ने कार्टून्स अगेंस्ट करप्शन की वेबसाईट को  बैन कर दिया। बाद में महाराष्ट्र में मेरे खिलाफ चार अलग अलग मुक़दमे दर्ज हो गए। जिनमे देशद्रोह, राष्ट्रीय अपमान, धार्मिक भावनाएं भड़काना और आई एक्ट की कुछ धाराओं के अंतर्गत  आरोप लगाए गए हैं। हांलांकि मुझे पूरा यकीन है कि भ्रष्टाचार और सत्ता की तानाशाही के खिलाफ इस लड़ाई में आप मेरे साथ हैं फिर भी मुझे लगा की बेहतर होगा की इस बारे में मैं आप सबके सामने अपना पक्ष रखूँ। इसी उद्देश्य से ये लेख लिख रहा हूँ। आशा है आपको सहमत कर सकूँगा।
असीम त्रिवेदी
(कार्टूनिस्ट)

     जगजीत सिंह की एक नज़्म बहुत हिट थी.. बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी. भारत सरकार ने इसे बहुत गहरे से ले लिया और तय किया कि वो बात को निकलने ही नहीं देंगे. अब बात निकलेगी नहीं, आपके मुह में ही दब जायेगी. मुझे इस बात का एहसास तब हुआ जब अन्ना जी के अनशन के पहले ही दिन मुंबई पुलिस क्राइम ब्रांच द्वारा मेरी एंटी करप्शन वेब साईट को बैन कर दिया गया और सबसे ख़ास बात ये रही कि ये फैसला लेने के पहले मुझसे एक बार बात करना तक मुनासिब नहीं समझा गया. एक पुलिस अधिकारी ने स्वयं को संविधान मानते हुए निर्णय लिया कि साईट पर मौजूद कार्टून्स आपत्तिजनक हैं और तुरंत साईट को बैन करा दिया. ये सब इतनी तेज़ी से हुआ कि अन्ना जी के अनशन के पहले दिन दोपहर १२ बजे तक ये साईट बैन हो चुकी थी. बाद में पता लगा कि ऐसा एक वकील आर पी पण्डे की अर्जी पर हुआ जो कि वकील होने के अलावा मुंबई कांग्रेस के उत्तरी जिला महासचिव भी हैं. अगर इतनी तेज़ी प्रशासन ने भ्रस्टाचार के मामलों में दिखाई होती तो हमें कभी इस तरह करप्शन के खिलाफ सड़क पर न उतरना पड़ता.

   मुझ पर आरोप है कि मैंने संविधान का अपमान किया है तो जो मुंबई पुलिस ने किया वो क्या है. मेरे डोमेन प्रोवाईडर बिग रॉक का कहना है कि जब तक पुलिस उन्हें आदेश नहीं देगी वो साईट नहीं चालू करेंगे. मै समझ नहीं पा रहा हूँ कि एक आर्टिस्ट का काम क्या एक पुलिस ऑफीसर की सहमति का मोहताज़ है, क्या हमें कोई भी कार्टून बनाकर पहले पुलिस डिपार्टमेंट से पास कराना पडेगा. पुलिस ने खुद ही आरोप बनाया, खुद ही जांच कर ली और खुद ही सज़ा दे दी, वो भी मुझे एक छोटा सा एसएम्एस तक किये बिना. मेरी सारी मेहनत उस साईट के साथ दफन हो गयी होती अगर मेरे पास उसका बैकअप न होता. ये ऐसा है कि पुलिस को मै बता दूँ कि आपने चोरी कि है और पुलिस बिना मामला दर्ज किये, बिना आपसे बात किये सीधे आपको गोली मार दे. क्या इसे लोकतंत्र कहते हैं, क्या यही है हमारा संविधान ?

   अकबर के समय भी बीरबल बादशाह-सलामत की गलतियों पर अपने व्यंग्य से चोट किया करते थे. और यहाँ तो कोई सम्राट भी नहीं है. आज तो लोकतंत्र है. हम सब राजा हैं, हम सब सम्राट हैं. कबीर कहता था "निंदक नियरे राखिये, आगन कुटी छबाय." गनीमत है कि कबीर के टाइम में इंटरनेट नहीं था वरना सबसे पहले कबीर की ही वेबसाईट बैन होती फिर उसके मुह पर भी बैन लग जाता. जैसे-जैसे दूसरे देशों में फ्री स्पीच को समर्थन मिलता गया, हमारे यहाँ उलटा होता गया.

   कार्टूनिस्ट के बारे में भारत में बड़ी गलतफहमी फ़ैली हुयी है कि कार्टूनिस्ट का काम है लोगों को हँसाना. पर दोस्तों, कार्टूनिस्ट और जोकर में फर्क होता है. कार्टूनिस्ट का काम लोगों को हंसाना नहीं बल्कि बुराइयों पर चोट करना है. कार्टूनिस्ट आज के समय का कबीर है. कबीर कहता था "सुखिया सब संसार है, खावे और सोवे...दुखिया दास कबीर है, जागे और रोवे." कार्टूनिस्ट जागता है, वो कुछ कर नहीं सकता पर वो सच्ची तस्वीर सामने लाता है, जिससे लोग जागें और बदलाव की कोशिश करें. बचपन में स्कूल में पढ़ा था, "साहित्य समाज का दर्पण है." पढ़ा होगा उन्होंने भी, जिन्होंने साईट बैन की है और मुझ पर देशद्रोह का केस किया है. पर वो भूल गए, उन सारी बातों की तरह जो हमें बचपन में स्कूल में सिखाई गयी थीं, जैसे चोरी न करना, झूठ न बोलना, गालियाँ न बकना. शायद वो बातें हमें इसीलिये पढ़ाई जाती हैं कि बड़े होकर सब भूल जायें. तो साहित्य और दर्पण का मामला ये है कि आईने में आपको अपना चेहरा वैसा ही तो दिखाई देगा जैसा कि वो वाकई में है. ये तो ऐसा है कि आप शीशे पर ये आरोप लगायें कि भाई तुम बहुत बदसूरत सकल दिखा रहे हो और गुस्से में आकर शीशा तोड़ दें. इससे तो जो शीशा था वो भी गया, जो सुधार की गुन्जाईस थी वो भी गयी. हर आदमी शीशे में देखता है कि कहाँ चेहरा गन्दा है, कहाँ बाल नहीं ठीक हैं. ये वो काम था जो करना चाहिए था और सुधारना चाहिए था देश को, पर ऐसा हुआ नहीं. आईने पर देशद्रोह का मामला लगा दिया गया. आइने को तोड़ने की तैयारी है. इसीलिये हमारी तरफ एक कहावत है, बन्दर को शीशा नहीं दिखाना चाहिए. पर सवाल दूसरे का होता तो छोड़ देते, ये मामला तो हमारे घर का है. शीशा तो दिखाना ही पड़ेगा. और रही बात अंजाम की तो वो भी कबीर बता गया, "जो घर फूंके आपना, साथ हमारे आये."

   कहा जा रहा है, मैंने राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान किया है. मेरा ज़वाब है कि जब मैंने कहीं वास्तविक प्रतीकों का इस्तेमाल ही नहीं किया तो भला अपमान कैसे हो गया. मैंने तो बस ये बताया कि अगर हम आज के परिवेश में राष्ट्रीय प्रतीकों का पुनर्निर्धारण करें तो हमारे नए प्रतीक कैसे होने चाहिए. प्रतीकों का निर्धारण वास्तविकता के आधार पर होता है. यदि आप से कहा जाये कि शांति का प्रतीक ए के ४७ रायफल है तो क्या आप मान लेंगे ? वही स्थिति है हमारे प्रतीकों की, देश में कही भी सत्य नहीं जीत रहा, जीत रहा है भ्रष्ट. तो क्या हमारे नए प्रतीक में सत्यमेव जयते कि जगह भ्रष्टमेव जयते नहीं हो जाना चाहिए. आरोप है कि मैंने संसद को नेशनल टोइलेट बना दिया है, पर अपने दिल से पूछिए कि संसद को नेशनल टोइलेट किसने बनाया है ? मैंने या फिर लोकतंत्र का मज़ाक उड़ाने वाले नेताओं ने, रुपये लेकर सवाल पूछने वाले जन प्रतिनिधियों ने, भारी भारी घोटाले करके भी संसद में पहुच जाने वाले लोगों ने और खुद को जनता का सेवक नहीं बल्कि राजा समझने वाले सांसदों ने. आरजेडी सांसद राम कृपाल यादव राज्यसभा में ये कार्टून लहराकर बताते हैं कि लोकतंत्र का अपमान है. उन्हें लोकतंत्र का अपमान तब नज़र नहीं आता जब उन्ही की पार्टी के राजनीती यादव उसी सदन में लोकपाल बिल की कापी फाड़ते हैं, जब उन्ही की पार्टी के अध्यक्ष लालू प्रसाद खुले आम बयान देते हैं कि भारत में चुनाव मुद्दों से नहीं, धर्म और जाति के समीकरणों से जीते जाते हैं जब पूरी संसद देश के १२५ करोड़ लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करके लोकपाल के नाम पर जोकपाल लेकर आती है और उसे भी पास नहीं होने देती.

   मेरे एक और कार्टून पर लोगों को आपत्ति है जिसमे मैंने भारत माँ का गैंग रेप दिखाया है. दोस्तों कभी आपने सोचा है कि भारत माता कौन है ? भारत माता कोई धार्मिक या पौराणिक देवी नहीं हैं, कि मंदिर बना कर उसमे अगरबत्ती सुलगाएं और प्रसाद चढ़ाएं. डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया में नेहरू जी लिखते है, "कोई और नहीं बल्कि हम आप और भारत के सारे नागरिक ही भारत माता हैं. भारत माता की जय का मतलब है इन्ही देशवासियों कि जय..!" और इसलिए इन देशवाशियों पर अत्याचार का मतलब है भारत माता पर अत्याचार. मैंने वही तो कार्टून में दिखाया है कि किस तरह राजनेता और प्रशासनिक अधिकारी भारत माँ पर अत्याचार कर रहे हैं. फिर इसमें गलत क्या है. क्या सच दिखाना गलत है. अगर आपको इस तस्वीर से आपत्ति है तो जाइये देश को बदलिए ये तस्वीर आपने आप सुधर जायेगी.

   और रही बात मेरी इंटेशन की तो ये कार्टून्स देखकर कोई बच्चा भी बता सकता है कि इनका कारण देशद्रोह नहीं देशप्रेम है और इनका मकसद हकीकत सामने लाकर लोगों को भ्रस्टाचार के खिलाफ एकजुट करना है..!